प्रयागराज महाकुंभ में एक 13 साल की लड़की ने संन्यास लेने का फैसला किया था, लेकिन अब उसका संन्यास 6 दिन में ही वापस हो गया है। लड़की का नाम राखी सिंह था, जिसे संन्यास लेने के बाद गौरी गिरि महारानी नाम दिया गया था। राखी आगरा की रहने वाली थी और वह अपने परिवार के साथ महाकुंभ आई थी। नागाओं को देखकर उसने संन्यास लेने का फैसला किया था।
राखी के परिवार ने भी उसका साथ दिया था और उसकी जिद पर उन्होंने उसे जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि को दान कर दिया था। इसके बाद राखी को संगम स्नान कराया गया और उसका नाम बदल दिया गया। लेकिन अब जूना अखाड़े ने महंत कौशल गिरि को 7 साल के लिए निष्कासित कर दिया है, क्योंकि उन्होंने नाबालिग को गलत तरीके से शिष्य बनाया था।
श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के संरक्षक हरि गिरि महाराज ने कहा है कि यह अखाड़े की परंपरा नहीं है कि किसी नाबालिग को संन्यासी बना दें। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर बैठक कर सर्वसम्मति से फैसला लिया गया है। राखी के पिता संदीप सिंह ने कहा था कि बच्चों की खुशी, मां-बाप की खुशी होती है। उन्होंने कहा था कि बेटी चाहती थी कि साध्वी बने, उसके मन में वैराग्य जागृत हुआ, यह हमारे लिए सौभाग्य है।
राखी की मां रीमा सिंह ने कहा था कि उनकी बेटी पढ़ाई में होशियार है। वह बचपन से ही भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने का सपना संजोए हुए थी, लेकिन कुंभ में आने के बाद उसका विचार परिवर्तित हो गया। उन्होंने कहा था कि अब उनकी बेटी संन्यास लेकर धर्म का प्रचार करने की राह पर चल निकली है।
महंत कौशल गिरि ने कहा था कि संन्यास परंपरा में दीक्षा लेने की कोई उम्र नहीं होती। उन्होंने कहा था कि गौरी गिरि महारानी को 12 साल तक कठोर तप करना होगा। वह अखाड़े में रहकर गुरुकुल परंपरा के अनुसार शिक्षा-दीक्षा ग्रहण करेगी। जहां उसे वेद, उपनिषद एवं धर्म ग्रन्थ में पारंगत किया जाएगा। इसके बाद संन्यासी गौरी गिरि महारानी अपने तप साधना के साथ सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करेगी।