महाकुम्भ : संघ और संत समाज के मिलन से चल रहा राष्ट्रधर्म का दिव्य प्रवाह

महाकुम्भ : संघ और संत समाज के मिलन से चल रहा राष्ट्रधर्म का दिव्य प्रवाह

– संत और संघ समागम से प्रगाढ़ हुए संबंध, संत संकल्प से राष्ट्र चेतना का दिव्य प्रस्फुटन- विश्वगुरु भारत के पुनर्जागरण की ऐतिहासिक घड़ी महाकुम्भ में साकार हुआ सनातन स्वप्न

महाकुम्भ नगर, 5 फरवरी (हि.स.)। आज जब पूरी दुनिया मानवता, शांति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए लालयित और उत्सुक है, तब भारत ने महाकुम्भ के जरिए यह संदेश दिया है कि सशक्त राष्ट्र वही होता है, जिसकी नींव उसकी संस्कृति और अध्यात्म के मजबूत स्तम्भों पर टिकी होती है। धर्म और राष्ट्र एक-दूसरे के पूरक हैं और जब संत समाज एवं राष्ट्रवादी विचारधारा मिलकर कार्य करती है तो एक नए युग का सूत्रपात होता है।

144 वर्ष बाद संगम की पवित्र धरती पर आयोजित महाकुम्भ राष्ट्रवाद और सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण का सूत्रपात बनकर उभरा है। महाकुम्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने संत समाज से व्यक्तिगत सम्पर्क कर आशीष लिया। इससे न केवल संघ और संत समाज के संबंध और प्रगाढ़ हुए, बल्कि आध्यात्मिक और वैचारिक समृद्धि में भी अभिवृद्धि हुई।

विश्व के विशाल और सदी के सबसे भव्य आध्यात्मिक संगम महाकुम्भ में इस बार एक ऐतिहासिक पहल हुई, जब संघ और संत समाज के बीच वैचारिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रवादी समन्वय का एक नया अध्याय लिखा गया। यह संपर्क अभियान केवल एक संवाद नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और राष्ट्रवाद के मिलन का महासंगम था, जिसने भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व को सनातन चेतना की शक्ति का अहसास कराया।

1100 से अधिक संतों से किया गहन विचार-विमर्शविश्वभर से आए 1100 से अधिक संतों, महामंडलेश्वरों, अखाड़ा प्रमुखों और मठाधीशों से संवाद कर संघ कार्यकर्ताओं ने सनातन परंपरा और राष्ट्रनिर्माण में संत समाज की भूमिका पर गहन विचार-विमर्श किया। इस अभियान में संघ के चार प्रमुख प्रांतों- कानपुर, अवध, गोरक्ष और काशी से आए 200 स्वयंसेवकों ने भाग लिया और महाकुम्भ के 25 विशाल सेक्टरों में संतों से संपर्क साधा। इस अभियान का नेतृत्व संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक अनिल जी, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य शिवनारायण और क्षेत्र सह संपर्क प्रमुख मनोज ने किया। इन्हीं अनुभवी मार्गदर्शकों के नेतृत्व में संघ कार्यकर्ताओं ने संत समाज के साथ गहरा संवाद स्थापित किया, जिससे सनातन संस्कृति और राष्ट्रभक्ति का संदेश और अधिक मजबूत हुआ।

संघ और संतों का अद्वितीय समन्वय पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के सह सम्पर्क प्रमुख मनोज कुमार ने बताया कि संघ अब संत समाज के सहयोग से राष्ट्र निर्माण के लिए कई योजनाएं बना रहा है। इनमें धार्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता अभियान, युवाओं के लिए विशेष संस्कार शिविर और समाज सुधार से जुड़े कार्यक्रम शामिल होंगे। इसके लिए संपर्क अभियान के जरिए संघ ने संत समाज के बीच वैचारिक सेतु का निर्माण किया है। संघ और संतों का यह अद्वितीय समन्वय भविष्य में राष्ट्र निर्माण के नए सोपान रचेगा। इससे भारत न केवल आध्यात्मिक रूप से संपन्न होगा, बल्कि विश्वगुरु के अपने गौरवशाली पद पर पुनः प्रतिष्ठित होगा।

वैचारिक और आध्यात्मिक क्रांति का बीजमहाकुम्भ के इस ऐतिहासिक क्षण ने विश्व भर में सनातन संस्कृति और राष्ट्रवादी विचारधारा की शक्ति को पुनर्स्थापित करने का कार्य किया। संघ की यह पहल दर्शाती है कि राष्ट्र निर्माण केवल भौतिक संसाधनों से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना, सांस्कृतिक जागरुकता और संत समाज के मार्गदर्शन से ही संभव है। यह अभियान महज एक संपर्क प्रयास नहीं, बल्कि एक वैचारिक और आध्यात्मिक क्रांति का बीज है, जिसकी गूंज भविष्य में हर दिशा में सुनाई देगी। महाकुम्भ में संघ कार्यकर्ताओं को आध्यात्मिक एवं वैचारिक समृद्धि प्राप्त हुई। उन्होंने संत समाज से धर्म, योग, साधना, समाज सुधार और राष्ट्र निर्माण से जुड़े अनमोल विचार आत्मसात किए, जो आगे जाकर भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण में सहायक सिद्ध होंगे। संतों ने संघ कार्यकर्ताओं को धर्म और सेवा का एकात्म भाव समझाया और बताया कि राष्ट्रसेवा केवल समाज में परिवर्तन लाने का कार्य नहीं, बल्कि आत्मा के शुद्धिकरण और आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग भी है।

राष्ट्र निर्माण में संत समाज की भूमिका हुई और प्रभावीसंघ और संत समाज के इस ऐतिहासिक संवाद से राष्ट्र निर्माण की धारा को एक आध्यात्मिक आधार प्राप्त हुआ। संत समाज ने संघ के प्रयासों की सराहना करते हुए भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने के संकल्प में अपना पूरा समर्थन दिया। संतों ने स्पष्ट किया कि यदि राष्ट्र को महान बनाना है तो उसकी आध्यात्मिक नींव को और अधिक सुदृढ़ करना होगा। उन्होंने युवाओं को सनातन मूल्यों से जोड़ने, समाज में समरसता लाने और राष्ट्रवाद को एक वैचारिक और सांस्कृतिक चेतना के रूप में विकसित करने पर बल दिया।

संपर्क अभियान की ऐतिहासिक रूपरेखामहाकुम्भ का विशाल क्षेत्र 25 सेक्टरों में विभाजित किया गया है, जहां संघ कार्यकर्ताओं ने पूरे समर्पण और योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया। साथ ही संघ की प्रत्येक टोली ने संत-महात्माओं के साथ शिष्टाचार मुलाकात की, वैचारिक आदान-प्रदान किया और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त किया।

कानपुर प्रांत : 5 सेक्टर, 48 कार्यकर्ता, 218 संतों से संवादअवध प्रांत : 6 सेक्टर, 56 कार्यकर्ता, 275 संतों से संवादगोरक्ष प्रांत : 6 सेक्टर, 42 कार्यकर्ता, 246 संतों से संवादकाशी प्रांत : 7 सेक्टर, 54 कार्यकर्ता, 361 संतों से संवाद

अभियान की प्रमुख उपलब्धियां- संघ और संत समाज के संबंध और प्रगाढ़ हुए।- राष्ट्र निर्माण में संत समाज की भूमिका और अधिक प्रभावी बनी।- संघ कार्यकर्ताओं को आध्यात्मिक और वैचारिक समृद्धि प्राप्त हुई।- सनातन संस्कृति और राष्ट्रवाद के प्रचार-प्रसार को नई दिशा मिली।

संघ-संत संवाद का अमृत तत्वराष्ट्रवाद और धर्म : संतों ने संघ के कार्यों की सराहना करते हुए इसे ’राष्ट्र पुनर्जागरण का माध्यम’ बताया।संस्कृति और परंपरा : सनातन मूल्यों को जाग्रत करने के लिए संतों और संघ ने मिलकर प्रयास करने का संकल्प लिया।युवा जागरुकता : युवाओं में आध्यात्मिक और राष्ट्रभक्ति की भावना विकसित करने के लिए विशेष योजनाओं पर चर्चा हुई।समाज सुधार : जातिगत भेदभाव मिटाने और समरसता स्थापित करने पर बल दिया गया।———–