सृष्टि प्रलय के समय महर्षि मनु की नाव जहां ठहरी थी, वह भूमि है कश्मीर : शंकराचार्य विजयेन्द्र सरस्वती

सृष्टि प्रलय के समय महर्षि मनु की नाव जहां ठहरी थी, वह भूमि है कश्मीर : शंकराचार्य विजयेन्द्र सरस्वती

इस्लामिक आतंकवाद से देवभूमि कश्मीर की कईं बार हुई दुर्दशा

महाकुम्भ नगर, 25 जनवरी (हि.स.)। काञ्ची कामकोटि पीठम् काञ्चीपुरम् जगद्गुरु शंकराचार्य शंकर विजयेन्द्र सरस्वती ने शनिवार को कहा कि सृष्टि प्रलय के समय महर्षि मनु की नाव जहाँ ठहरी थी, वही भूमि कश्मीर है। जहाँ पर शिव-पार्वती सहित देव, यक्ष, गन्धर्व, नाग, किन्नर एवं पिशाच आदि दिव्य निवास करते हैं । उस भूमि पर उनकी पूजा उपासना करने वाले जन ही नहीं है। इस्लामिक आतंकवाद से देवभूमि कश्मीर की कईं बार दुर्दशा हुई, लेकिन फिर भी देव-यक्ष के लिए बलि, शिव-पार्वती की अर्चना कभी बाधित नहीं हुई। परन्तु गणतन्त्र भारत में भारतीय शासन के रहते हुए वर्तमान में कश्मीर में न वेद की ऋचाओं का घोष सुनायी देता है, न ही आगम परम्परा परिलक्षित होती है, न ही शिव-पार्वती की अर्चना होती है, न ही देव-यक्ष को उनकी बलि प्राप्त होती है, न ही संस्कृत साहित्य का सृजन होता है, न ही मन्त्र-तन्त्र परम्परा का निर्वहन होता है । यहाँ तक कि पारिवारिक परम्पराओं के गृह्यसूत्रों का अभ्यास भी चुक गया है। उन्होंन बताया कि सनातन धर्म का मस्तिष्क कश्मीर नामक विषय पर 26 जनवरी को राष्ट्रिय सम्मेलन तीर्थराज प्रयाग में होगा।

उन्होंने कहा कि कश्मीर सनातन वैदिक धर्म की धुरी है, लेकिन वह कश्यपमेरु आज कातर भाव से दुर्दिन भोग रहा है। कश्मीर के निवासी विस्थापित होकर अपने ही राष्ट्र में शरणार्थी बनकर अपने ही सामने अपनी पारम्परिक निधि को नष्ट होते हुए देखने को विवश है। कश्मीर में पिछले 36 वर्षों से देव शक्तियां अपने पोषण की प्रतीक्षा कर रही हैं। कश्मीरी हिन्दू अपनी भूमि पुनः प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके लिए सम्पूर्ण हिन्दू समाज को सोचना चाहिए।

शंकराचार्य ने कहा कि कश्मीर की देव शक्तियों को उनकी बलि प्राप्त हो। उनका अर्चन-पूजन प्राप्त हो व देवभूमि कश्मीर के निवासी हिन्दुओं को पुनर्वास एवं न्याय प्राप्त हो। उन्होंने बताया कि सनातन हिन्दू धर्म के मेरु कश्मीर को पुनः सनातन धर्ममय बनाने के लिए सनातन धर्म का मस्तिष्क कश्मीर नामक विषय पर 26 जनवरी को राष्ट्रिय सम्मेलन तीर्थराज प्रयाग में होगा।